नवरात्रि 2019 स्पेशल - पूजा और कलश स्थापना करने की विधि, और पूजा के समय मन्त्र के बारे यहाँ जाने ..
प्रिय भक्तो हिन्दू मान्यता के अनुसार अपने हिन्दू धर्म में पूरी सृष्टी में माँ का स्थान सबसे ऊँचा रखा गया है जो सम्पूर्ण ब्रमांड की कार्य दायनी है हिन्दुओ में माँ का यह पर्व नवरात्रि उत्सव देवी अंबा (विद्युत) का प्रतिनिधित्व है जिसको श्रद्धालू बहुत ही धूम धाम से अपनी अपनी श्रधा के अनुसार मनाते है

नवरात्रों में माँ के किस स्वरुप की सबसे अधिक पूजा अर्चना उपासना की जाती है
नवरात्री एक संस्कृत का शब्द है जिसका हिंदी में अर्थ होता है 'नौ रातें' माँ के भक्तो नव दुर्गो में कुछ लोग माँ की पूजा अर्चना प्रथम और अंतिम दिन करते है लेकिन कुछ भक्त माँ की अराधना नो दिन तक अपनी अपनी भक्ति के अनुसार करते है नौदुर्गो में विशेष रूप से नवरात्रि के नौ रातों में तीन देवियों को पूजना बहुत जरुरी होता है जिनकी भक्ति करने से अनोखे फल की प्राप्ति होती है सुख, शांति,धन, ज्ञान और समर्धि प्रदान करने वाली देवियाँ जो है -
- महा लक्ष्मी
- नवदुर्गा
- सरस्वती
1- महा लक्ष्मी
महालक्ष्मी की पूजा नव दुर्गो में जिनको हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा पूजा जाता है यह देवी सभी को सुख शांति,धन समर्धि का वरदान देती है जो भगवान विष्णु की धर्म पत्नी है महालक्ष्मी की पूजा दीपावली पर भी भगवान गणेश के साथ की जाती है जो घर से दरिद्रता दूर कर खुशहाली भरती है
2 - नवदुर्गा
नवदुर्गा देवी जिनमे नौ देवी के शक्ति होती है,जिसमे पार्वती सबसे पहले विराजमान रहती बहुत पुराने जमाने की बाद है जब देवी को राक्षसों पर गुस्सा आया था तब दुर्गा ने अपने नौ सरुपो को अलग कर अलग अलग शस्त्रों सब देवियों ने क्रोध में आकर राक्षस को मार दिया देवी दुगा पापो का विनाश करने वाली देवी है
3 - सरस्वती
नवरात्री में हम माँ सरस्वती की पूजा उज्वल भविष्य की कामना करने के लिए करते है माता सरस्वती की अराधना हम सुबह जल्दी उठकर अपनी शिक्षा पाने के लिए करते है जो संगीत की देवी है कन्थ्वादिनी है
नवरात्रों में पूरा वातावरण भी नौ देवियों से भक्ति मय हो जाता है दुर्गा पूजा में हम प्रथम से आखिर तक इन नौ देवी को प्रसन्न करने की तपस्या करते है आईये जानते है माता के इन नौरूपों के बारे में ...
- माता शैलपुत्री - इसका अर्थ - विशाल पहाड़ो की पुत्री शैलपुत्रीदेवी है।
- माता ब्रह्मचारिणी - इसका अर्थ - ब्रह्मचारीणी।
- माता चंद्रघंटा - इसका अर्थ - चाँद की तरह चमकने वालीदेवी।
- माता कूष्माण्डा - इसका अर्थ - पूरा दुनिया जिनके चरणों में है।
- माता स्कंदमाता - इसका अर्थ - कार्तिक स्वामी की देवी।
- माता कात्यायनी - इसका अर्थ - कात्यायन आश्रम में जन्मि।
- माता कालरात्रि - इसका अर्थ - काल का नाश कर देती है
- माता महागौरी - इसका अर्थ - सफेद रंग वाली मां।
- माता सिद्धिदात्री - इसका अर्थ - सबको सिद्धि प्रदान करने वाली।
पूजा करने की विधि
भक्तो मान्यता के अनुसार ऐसा कहा जाता है की माँ के नौ रातो के समूह को नवरात्र कहते है नवरात्र में माँ केलाश पर्वत से उठकर अपने भक्तो के कष्टों को हरने के लिए आती है नवरात्री में पूजा तो सभी लोग करते है लेकिन विधि विधान से पूजा करने का अलग ही विशेष मनवांछित फल मिलता है माँ प्रसन्न हो जाती है नवरात्रों में सुबह जल्दी उठकर पूजा करना बहुत अच्छा मामन जाता है नवरात्रों में माँ की सच्चे मन से लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछा कर 9 देवी की तस्वीर रखते है तस्वीर गुलाब के फूलो की माला चढ़ा कर 9 देवियों को लाल रोली चन्दन अक्षत का तिलक करके देवी को श्रंगार लाल चुंदरी उढ़ाकर उनके आगे देसी घी का दीपक जलाए मंदिर में गंगा जल का छिडकाव करे सबसे महत्वपूर्ण बात माँ के पास एक लोटे पर मोली लपेट कर पानी भर कर उसमे सिक्का डाले और कुछ फुल, बाद में सुखा नारियल ले उस पर कलावा लपेट कर जल से भरे लोटे के ऊपर रख कर माँ के पास रखे फिर घर की बनी या मोल की मेवा मिष्ठान घर में बने ब्रत के व्यंजन माँ के लिए रखे कपूर अगर बत्ती की धुव दिखाकर पूजा अर्चना करे बाद में माँ को सुन्दर सुन्दर भजन और भेटे सुनाए
कैसे करे नव दुर्गो में कलश स्थापित
हिन्दू सभ्यता के अनुसार नव दुर्गो में कलश स्थापना का बहुत विशेष अलग महत्व होता है घर में कलश स्थापना करने से मन की सभी मनोकामनाओ की पूर्ति होती है और धन में लाभ एव बढोतरी होती है कलश स्थापना करने के लिए आप सोने, चाँदी,पीतल,ताबा,मिट्टी का भी कलश ले सकते है कलश साफ़ वा कही से भी टूटे फटके न हो सबसे पहले कलश को गंगा जल छिड़क कर शुद्ध करे कलश के नीचे मिट्टी के परात या पूजा के पास जमीन पर ही मिटटी का ढेर कर उसमे जोउ बोये थोड़ा ऊपर से पानी की छयी मारे फिर मंत्र पढ़ते हुए ढेर पर कलश को बीच में स्थापित करे कलश कुम्भ को विभिन्न प्रकार के सुगंधित द्रव्य व वस्त्राभूषण अंकर सहित पंचपल्लव से आच्छादित करें हल्दी, सर्वोषधी अक्षत कलश के जल में छोड़ दें। कुम्भ के मुख पर चावलों से भरा हुआ पूर्णपात्र तथा नारियल को स्थापित करें। सभी तीर्थो के जल का कुम्भ कलश में जल डालकर आम के पत्तो व अशोक के पत्ते किनारे से कलश में लगा कर सच्चे दिल से माँ को घर में विराजमान रहने के लिए आवाहन की स्तुति कीजिये
पूजा में बैठते समय अथवा पूजा करने हेतु मंत्रो के बिना पाठ करना हिन्दू धर्म में पूजा अधूरी मानी जाती है
- आवाहन मंत्र = ऊँ कलषस्य मुखे विष्णुः कण्ठे रूद्रः समाश्रितः। मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणाः स्मृताः।। गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरू। ।
- आसन पर बैठने का नियम = ऊँ अनेकरत्न-संयुक्तं नानामणिसमन्वितम्। कात्र्तस्वरमयं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
- पाद्य (पादप्रक्षालनार्थ जल = ऊँ तीर्थोदकं निर्मलऽच सर्वसौगन्ध्यसंयुतम्। पादप्रक्षालनार्थाय दत्तं ते प्रतिगृह्यताम्।।
- गंध पुष्प्युक्त जल = ऊँ गन्ध-पुष्पाक्षतैर्युक्तं अध्र्यंसम्मपादितं मया।गृह्णात्वेतत्प्रसादेन अनुगृह्णातुनिर्भरम्।।
- आचमन सुगन्धित पेय जल = ऊँ कर्पूरेण सुगन्धेन वासितं स्वादु षीतलम्। तोयमाचमनायेदं पीयूषसदृषं पिब।।
- स्नानं चन्दनादि मिश्रित जल = ऊँ मन्दाकिन्याः समानीतैः कर्पूरागरूवासितैः।पयोभिर्निर्मलैरेभिःदिव्यःकायो हि षोध्यताम्।।
- वस्त्र धोती-कुत्र्ता आदि = ऊँ सर्वभूषाधिके सौम्ये लोकलज्जानिवारणे। मया सम्पादिते तुभ्यं गृह्येतां वाससी षुभे।।
- आभूषण अलंकरण = ऊँ अलंकारान् महादिव्यान् नानारत्नैर्विनिर्मितान्। धारयैतान् स्वकीयेऽस्मिन् षरीरे दिव्यतेजसि।।
- गन्ध चन्दनादि = ऊँ श्रीकरं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। वपुषे सुफलं ह्येतत् षीतलं प्रतिगृह्यताम्।।
- पुष्प फूल =ऊँ माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि भक्त्तितः।मयाऽऽहृतानि पुष्पाणि पादयोरर्पितानि ते।।
- धूप के लिए = ऊँ वनस्पतिरसोद्भूतः सुगन्धिः घ्राणतर्पणः।सर्वैर्देवैः ष्लाघितोऽयं सुधूपः प्रतिगृह्यताम्।।
- दीप गोघृत =ऊँ साज्यः सुवर्तिसंयुक्तो वह्निना द्योतितो मया।गृह्यतां दीपकोह्येष त्रैलोक्य-तिमिरापहः।।
- नैवेद्य (भोज्य) = ऊँ षर्कराखण्डखाद्यानि दधि-क्षीर घृतानि च। रसनाकर्षणान्येतत् नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्।।
- आचमन (जल) =ऊँ गंगाजलं समानीतं सुवर्णकलषस्थितम्। सुस्वादु पावनं ह्येतदाचम मुख-षुद्धये।।
- दक्षिणायुक्त ताम्बूल (द्रव्य पानपत्ता) = ऊँ लवंगैलादि-संयुक्तं ताम्बूलं दक्षिणां तथा। पत्र-पुष्पस्वरूपां हि गृहाणानुगृहाण माम्।।
- आरती दीप से =ऊँ चन्द्रादित्यौ च धरणी विद्युदग्निस्तथैव च। त्वमेव सर्व-ज्योतींषि आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम्।।
- परिक्रमा = ऊँ यानि कानि च पापानि जन्मांतर-कृतानि च। प्रदक्षिणायाः नष्यन्तु सर्वाणीह पदे पदे।।
कैसे करे माँ से छमा याचना करना
भक्तो सभी जाने या अनजाने में विधि विधान से पूजा करने पर भी भक्तो से पूजा के दौरान गलतिया हो जाती है जिसके कारण हमको कही न कही हानी व नुक्सान हो जाता है लेकिन अगर अपनी भूल का तुरंत छमा मांगकर,माँ के सामने मंत्र उपचार करे ऊँ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्। पूजां चैव न जानामि भक्त एष हि क्षम्यताम्।। अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम। तस्मात्कारूण्यभावेन भक्तोऽयमर्हति क्षमाम्।। मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं तथैव च। यत्पूजितं मया ह्यत्र परिपूर्ण तदस्तु मे।।
ऊँ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। सर्वे भद्राणि पष्यन्तु मा कष्चिद् दुख-भाग्भवेत्
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